जमाबंदी (jamabandi)

जमाबंदी बिहार के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण अद्यतन राजस्व अभिलेख है. सामान्य भाषा में जमाबंदी का तात्पर्य एक रैयत द्वारा धारित भूमि का विवरण एक जगह दर्ज कर कुल रकबा और दिए जाने वाले लगान के ब्योरे से है. जिस पंजी में यह विवरण दर्ज होता है उसे जमाबंदी पंजी कहते है . जमाबंदी पंजी के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बातें जिसे प्रत्येक उस व्यक्ति  को जानना चाहिए जिसके पास किसी भी भूखंड का मालिकाना हक है
               १-जमाबंदी पंजी में वर्तमान में किसी भुधारी  / रैयत द्वारा धारित भूखंड  तथा उसपर  लिए जानेवाले लगान का विवरण दर्ज  रहता है
               २-जमाबंदी पंजी के आधार पर ही  किसी भुधारी  / रैयत को लगान रसीद दिया जाता है
इसे रजिस्टर-२ भी कहते है.
                ३-एक राजस्व गाँव का एक जमाबंदी पंजी होता है . रैयतों की संख्या अधिक होने पर इस पंजी के एक से अधिक वोलउम भी होते है
                ४-इसमें गैर-मजरूआ आम/मालिक/खास , बेलगान, काबिल लगान  एवम बा-काश्त / खुद-काश्त  भूमि का विवरण नहीं रहता है. परन्तु जब सक्षम प्राधिकार द्वारा ऐसी भूमि का लगान निर्धारित कर दिया जाता है ,तब  उस आदेश और वाद संख्या का विवरण दर्ज करते हुए इसकी प्रविष्ती  जमाबंदी पंजी में की जाती है. इस प्रक्रिया को रैयतिकरण भी कहते है.
      राजस्व एवं भूमि सुधर विभाग के परिपत्र के अनुसार  गैर मजरूआ मालिक / खास भूमि के रैयातिकरण का अधिकार जिला के समाहर्ता को औरबा-काश्त / खुद-काश्त  भूमि के मामले में यह अधिकार भूमि सुधर उप-समाहर्ता को है .
               ५-जमाबंदी पंजी में जिस पृष्ठ पर किसी रैयत का ब्यौरा दर्ज होता है सामान्य तौर पर वही उस रैयत का जमाबंदी नंबर होता है.
               ६-जमाबंदी पंजी का नक़ल पहले नहीं दिया जाता था . अभी भी इसके नक़ल देने की प्रक्रिया अंचलों में निर्धारित नहीं है. परन्तु सूचना के अधिकार के तहत इसकी प्रति ली जा सकती है.
                ७-दाखिल ख़ारिज अधिनियम-२०११ के तहत किसी जमाबंदी को रद्द करने का अधिकार जिले के अपर-समाहर्ता (राजस्व) को है.
                 ८-यह हल्का कचहरी में संधारित रहता है. इसकी एक प्रति अंचल कार्यालय में भी रखा जाना है.

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