बी० टी० एक्ट / बिहार काश्तकारी अधिनियम / बंगाल काश्तकारी अधिनियम-१८८५ (bengal tenancy act / bihar tenancy act / b t act -1885)
बंगाल काश्तकारी अधिनियम सन् १८८५ में लागू हुआ . सन १९१२ में जब बिहार बंगाल से अलग हुआ तब उसने इस एक्ट को यथावत अंगीकार कर लिया . पुनः आजादी के बाद भी इसे अंगीकार कर लिया गया . इस अधिनियम में तीन अनुसूची और १९६ धरायें है . आवश्यकता के अनुरूप समय-सयम पर संशोधन होते रहे है . इस एक्ट को बनाने का मुख्य उदेश्य जमींदार-काश्तकार के भूमि से सम्बधित प्रथागत अधिकारों(customary rights) को प्रख्यापित करना था . इसे landlord-tenant law भी कहा जाता है . इस अधिनियम के द्वारा पहली बार रैयतों के पक्ष में निम्नांकित अधिकारों को प्रख्यापित किया गया.- १.कोई रैयत बारह साल तक लगातार किसी जमीन पर कायम है , और उसका लगान जमींदार को दे रहा है तो उसे सेटल रैयत का दर्जा प्राप्त हुआ.. २.सेटल रैयत को जमींदार बिना कारण बेदखल नहीं कर सकता था . 3.सेटल रैयत के उतराधिकारी को स्वतः रैयती अधिकार मिलता है. उतराधिकारी को इसकी लिखित सूचना जमींदार को देना पड़ता था . ४.सेटल रैयत अपनी जमीन की बिक्री कर सकता था. इसके अतिरिक्त कई ऐसे प्रावधान थे जो रैयतों के पक्ष में थे. जमींदार मनमाने तरीके से लगान क